चाप’लूसी’ और कुत्ते के बीच है तगड़ा कनेक्शन, कारण आपको कर देगा हैरान ?

हंसी के भी कई रूप और चेहरे होते हैं. अंदर से आनंदित होने के बाद आने वाली हंसी. बेटे, बेटी की सफलता के बाद वाली हंसी, किसी खेल, चुनाव और प्रतियोगित में विजयी होने की हंसी और एक बेशर्मी की हंसी. इनमें से बेशर्मी वाली हंसी बनावटी होती है, या फिर वो स्पाइनलेस होने पर निकलती है. जैसे बेशर्मी वाली हंसी बड़ी कारगर होती है, इस हंसी के बाद आपको एक अनचाही लेकिन आवश्यक डिग्री मिल जाती है. उस डिग्री के पन्ने पर बेशर्म हंसी का हस्ताक्षर होता है. इस हंसी के साथ यदि थोड़ी पीछे वाली बोन में गुदगुदी हो, जीभ अचानक बाहर निकलने को आतुर हो जाये, समझिए सर्टिफायड, मोडिफायड रूप में कहें, तो चम्मच नहीं तो चापलूसी में आप महारत हासिल करने की ओर अग्रसर हैं.

वैसे भी इसमें बुराई नहीं, क्या अभिनेता, क्या नेता से लेकर आम इंसान और जानवर तक. सबको इसमें मजे आते हैं. वैसे इस शब्द के आखिरी दो शब्द ‘लूसी’ से एक सफेद झबरे कुत्ते वाली झलक मिलती है. जैसे, वो जीभ लपलपाते हुए चाटने को तैयार हो. उसे स्वाद आये न आये, उसे चाटकर ये जताना है कि, वो सामने वाले को ऊपर से लेकर नीचे तक, आगाड़ से लेकर पछाड़ तक चाहता है. खैर, वैचारिक और वैज्ञानिक रूप से कोई दूसरी भी परिभाषा हो सकती है. वैसे कुछ लोग मानते है कि इसकी कोई परिभाषा, कोई वैज्ञानिक कारण और कोई विशेष गूढ़ रहस्य नहीं होता. इसमें कमाल सिर्फ और सिर्फ जिह्वा का होता है.

वैसे हमारा मानना है कि चापलूसी एक उम्दा आर्ट है. इसमें सब कोई महारत हासिल नहीं कर सकता. इसमें परांगत होने के लिए किसी विशेष कोर्स की जरूरत नहीं होती. बस बेशर्म हंसी को, किसी सॉफ्ट से आयुर्वेदिक तेल में लिपटाकर चेहरे के धनुष पर मुस्कान की तीर लगाकर उसे छोड़ते रहिए. उसे निशाने पर लगना ही लगना है. भले आपके बगल वाले काम कर करके हड्डी का चूरा बनाकर ईमानदारी की प्लेट में कहीं सजाकर ले जायें. यकीन मानिये उनके चूरे को कोई देखना पसंद नहीं करेगा. क्योंकि स्पाइनलेसी के सामने आपके काम के प्रचंड घमंड का विश्वास भी डगमगा जायेगा. आपने सिर्फ काम किया, उसने सिर्फ कसीदे काढ़े. आपके काम के जज्बे को उसने जुमलों में उड़ाकर बाजी मार ली.

अनुभवी लोग मानते हैं कि चापलूस असल में सामने वाले के हितैषी होते हैं और आप हो नहीं सकते. वे लोग वहीं करते हैं, जो सामने वाले के मन को भाता हो. वो मिलते ही, पीछे वाली बोन ऐसे हिलाते हैं, जैसे किसी ने वेलेंनटाइन के महीने में किसी को गुलाब दे दिया हो. वो तारीफ के तेल को इतनी तन्मयता से लगाते हैं कि अगले को किसी मसाज सेंटर में निवस्त्र बदन लेटे होने का एहसास और आनंद आने लगता है. हमारे गांव के एक स्वर्गवासी बुजुर्ग का कहना था कि उनमें कुछ स्त्रैण गुण भी होते हैं, जैसे बात करते वक्त हाथ हिलाना, चेहरे पर हमेशा लक्में वाली मुस्कान चस्पा रखना. बात-बात पर गोबर के गोईठा पर पकी हुई फट्टी लिट्टी की तरह दांत चियार देना. हिलते-डुलते लहराते हुए चलना. कमर का झुकने के लिए अलर्ट मोड में होना. स्पाइन का इस कदर मुड़ जाना, मानो उसमें फ्रैक्चर हो गया हो.


उनके पास प्लानिंग और शब्दों के सियासी झूले भी होते हैं, उसमें नये-नये टेस्ट डालकर आपको वो खिलाते रहेंगे. इतना ज्यादा खिलायेंगे कि कुछ वक्त और काल तक आपके कपाल और दिलोदिमाग पर उनकी बातें हावी रहेंगी और आपके फैसले भी उनके हिसाब से होते रहेंगे. ये आपके आस-पास मिथ्या प्रशंसा का एक ऐसा महल खड़ा कर देते हैं, जिसकी नींव नहीं होती. वक्त बदलने पर उसे धकेल कर, उसकी जगह दूसरे के लिए महल खड़ा करने लगते हैं. अब आप, मन में ही सोचिये. कठोर और सत्य वाणी आज की तारीख में किसी को पसंद नहीं आती. वैसे में जीवन के दैनिक खुशी और आनंद के आवश्यक्ता की पूर्ति यही प्राणी करते हैं. हां, लेकिन सनद रहे, ये बदलते भी उसी रफ्तार से हैं. जैसे आपका कार्यकाल खत्म हो रहा हो, आप कहीं जा रहे हों, तो वे एक मारक मुस्कान आपकी ओर उछालकर, मोहक मुस्कान की पोटली, नये आगंतुक के लिए रख छोड़ते हैं.

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Discover more from Muzaffarpur News

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading