डॉक्टर धनी राम बरुआ का दावा
हालांकि, भारतीय डॉक्टर धनी राम बरुआ का दावा है कि उन्होंने दो दशक पूर्व ही इस तकनीक को खोज निकाली थी। उन्होंने मानव के अंदर सुअर के दिल का सफल प्रत्यारोपण किया था। इस प्रत्यारोपण के बाद वह व्यक्ति सात दिनों तक जीवित रहा। इस प्रत्यारोपण के चलते उन्हें जेल तक जाना पड़ा था। इन दिनों डॉ बरुआ गुवाहाटी से 20 किलोमीटर दूर सोनपुर नामक स्थान पर हर्ट सिटी में हृदय रोगियों को जीवन प्रदान कर रहे हैं। उनका यह हर्ट सिटी करीब 50 एकड़ में फैला हुआ है।
क्रॉस स्पीशीज ऑर्गन ट्रांस्प्लांटेशन यानि अलग-अलग किस्म के जीवों के आपस में अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दिशा में एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। जर्मन, स्वीडन और स्वीटजरलैंड के वैज्ञानिकाें ने सुअर के दिल को मानव में सफल प्रत्यारोपण किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रत्यारोपण के बाद वह व्यक्ति छह माह तक जीवित रहा। सफल प्रत्यारोपण के बाद वैज्ञानिकों में उत्साह है। इसमें वह असीम संभावना देख रहे हैं।
हृदय प्रत्यारोपण के लिए सूअर ही बेहतर क्यों
लंगूर में हुआ सफल प्रयोग
ऐसी स्थिति में अक्सर ऑर्गन रिजेक्शन हो जाने का खतरा रहता है। लेकिन इस प्रयोग में सूअर के हृदय को जेनेटिकली मॉडिफाई किया गया था ताकि वह लंगूर की प्राकृतिक प्रतिरोधी प्रणाली के अनुरूप खुद को ढाल ले। वैज्ञानिकों ने सूअर के हृदय में मानवीय जेनेटिक लक्षण भी डाले थे। साथ ही लंगूर को एसी दवा दी गई थी जो रोग प्रतिरोधी प्रणाली को निष्प्रभावी कर देती है।
17 वीं शताब्दी में पहली बार जीन बैपटिस्ट डेनिस ने जानवरों से मनुष्यों में रक्त संक्रमण का अभ्यास शुरू किया।
19वीं शताब्दी में विभिन्न प्रकार के जानवरों के त्वचा का मानव में प्रत्यारोपण किया गया। इसमें मेंढक सबसे ज्यादा लोकप्रिय था।
1963-1964 में रीमेत्स्मा ने 13 रोगियों में चिम्पांजी के गुर्दे को ट्रांसप्लांट किया था। इसमें अधिकतर मरीजों की मौत चार से छह सप्ताह के अंदर हो गई। एक मरीज अपने काम पर लौटा लेकिन नौ माह बाद उसकी भी मौत हो गई।
1964 में हार्डी द्वारा एक चिम्पांजी के दिल को इंसान में प्रत्यारोपण किया गया। लेकिन यह असफल रहा, दो घंटे के भीतर उसकी मौत हो गई।
स्टारज़ल ने 1966 में पहली बार चिम्पांजी के यकृत को मानव में प्रत्यारोपण किया। 1992 में दोबारा यकृत प्रत्यारोपण का प्रयास किया गया और मरीब 70 दिनों तक जीवित रहा।