मनेर में मुगलों द्वारा बनवाया गया पीर हजरत मखदूम शाह कमाल उद्दीन अहमद यहिया मनेरी का विश्व प्रसिद्ध मकबरा है, जो मुग़ल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसे छोटी दरगाह भी कहते हैं। मखदूम शाह ऊंचे ओहदे वाले एक नामी पीर थे। उनकी मृत्यु 1608 ई.में हुई थी। बाद में मुगल सम्राट जहांगीर के शासन में उस वक्त बिहार के शासक इब्राहिम खान ने मखदूम शाह दौलत के कब्र पर इस इमारत का निर्माण 1616 ई. को करवाया गया। इसी मकबरे में ही इब्राहिम खान को भी दफनाया गया है।

मकबरा कम उंचाई वाले आयताकार चबूतरे पर चुनार के बलुआ पत्थर से निर्मित है। इसके मुख्य कक्ष की आतंरिक माप 9.44 मी. और बाहरी माप 10.56 मी. है। यह चारों ओर से 3.55 मी. चौड़े बरामदे से घिरा हुआ है। इसमें कुरान की आयतें भी उकेरी गयीं हैं। दरगाह की खूबसूरती देखते बनती है लोग इसे दूर -दूर से देखने आते हैं। दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो कोई खिलौना रखा हो। सोलहवीं सदी में बना यह दरगाह आज भी अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है।

दरगाह के अंदरूनी भाग में एक खुफिया रास्ता भी है. जिसे अब लोहे के गेट से बंद कर दिया गया है। ऐसा मानना है कि इस गुप्त रास्ते से जो भी अंदर जाता है, वो फिर कभी बाहर नहीं आता। वास्तविकता चाहे जो रहे पर यहां आने वाले इस गुप्त रास्ते को जरूर देखते हैं। दरगाह के अंदर मन्नतें भी पूरी होती हैं। ऐसा विश्वास है कि यहां धागा बांधने से मन की मुरादें पूरी होती हैं। पूरा मकबरा देखने में बड़ा ही भव्य लगता है।

दरगाह के सामने एक तालाब भी है जो दरगाह की खूबसूरती में चार चांद लगाता है। इस तालाब में छोटे-छोटे कमल के फूल खिले रहते हैं और चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़, जिससे जहां आने वाले लोग इस खूबसूरत नजारा का आनंद उठाना नहीं भूलते। इस तालाब में पानी कभी सूखता नहीं है। लोग इसमें मछलियां पकड़ते हैं।

यह तालाब दरगाह से भी ज्यादा पुराना है इस तालाब का निर्माण इसलिए कराया गया था ताकि दरगाह का निर्माण हो सके। बताया जाता है कि तालाब की खुदाई कराकर इसी के पानी से दरगाह की नींव रखी गई थी। तालाब का एक कनेक्शन सोन नदी से है। इस तालाब के कोने में रास्ता नजर आता है इसी रास्ते से सोन नदी का जल इस तालाब में आता है। अभी भी जब सोन नदी में पानी ज्यादा होता है तो तालाब का पानी बढ़ जाता है।