पीतल की नगरी से मशहूर हैं बेतिया का ये गांव:बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई बनाता पीतल के बर्तन, सरकार के मदद के बिना आत्मनिर्भर बन रहा गांव

बेतिया में एक ऐसा गांव है, जो लघु उद्योग के बेहतरीन नमूने पेश कर रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को पुरा कर रहा है। गांव के हरेक घर में लोग बर्तन बनाने का कारोबार कर रहे हैं। यहां के बनाए गए बर्तन की चमक सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में भी प्रसिद्ध है। बता दे कि यह गाँव बेतिया जिला के मझौलिया प्रखंड के चनायन बांध पंचायत के कसेरा टोला है। इस गांव के लोग पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम कर रहे हैं। जो पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत के तस्वीर पेश करता है।

200 परिवार के 1800 लोगों कि आबादी वाली इस गांव में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी पीतल के बर्तन बनाने में माहिर हैं। इस गांव के हर घर में बर्तन बनाने के लिए भट्ठी मौजूद हैं। इसलिए यह गांव पीतल नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां के बर्तन देश के कई राज्यों में बेचे जाते हैं। खास कर शादी विवाह जैसे मौके पर इसकी खुब डिमांड होती है।

लेकिन जिन सुविधाओं की जरूरत यहां के लोगों को है, वह उन्हें नहीं मिल पा रहा है। इस हुनर मंद आत्मनिर्भर गांव में युवा और युवतीयों को बर्तन बनाते देख आप नये भारत का तस्वीरें देख सहेज ही अंदाजा लगा सकते हैं। वहीं इस गांव कि लड़कियां भी किसी से कम नहीं पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर गांव कि बेटियां मिसाल भी पेश कर रही है।

कई साल से बना रहे पीतल के बर्तन

हथौड़ी से बर्तन पीटकर यह अपने पुश्तैनी काम को बचाने और सहेजने की कोशिश में लगे हुए हैं। मझौलिया के कसेरा टोला गांव को पश्चिमी चंपारण का पीतल नगरी कहा जाता है। दशकों नहीं बल्कि सैकड़ों साल से यहां के लोग पीतल के बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं। दूसरे उद्योगों ने जरूर कुछ तरक्की की राह पकड़ ली हो। लेकिन कसेरा गांव के लोग आज भी हाथ और हथौड़े से बर्तन बना रहे।

राज्य सरकार ने नहीं दी कोई सुविधा

मझौलिया प्रखंड के इस कसेरा टोला गांव में लगभग 18 सौ की आबादी रहती है। इस गांव के लोग यहां पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम कर रहे हैं। लेकिन इन्हें किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी गयी है। कारीगरों का कहना है कि सरकार की ओर से कुछ नहीं किया गया है। उन्हें राज्य सरकार से काफी उम्मीदे थी। लेकिन राज्य सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

अलग-अलग डिजाइनों के बनाते हैं बर्तन

मेहनत और हाथ के जादू से यहां के लोग पीतल, तांबा ,लोहा, कासा को एक नया रूप देते है। अलग-अलग डिजाइनों के बर्तन बनाते है। कारीगर बर्तन बनाकर उसे बाजार में भी बेचते है। ना कि सिर्फ बिहार में बल्कि उनके बर्तन उत्तर प्रदेश में भी प्रसिद्व है। वहीं, अगर सरकार उनके इस कार्य में उनका सहयोग करे, तो इस गांव के लोग सुबे और देश के नाम को एक नई ऊंचाई दे सकते हैं।

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