सहायक नदियों में गांगेय डॉल्फिन की संख्या बढ़ी:चौसा से मनिहारी तक बोट से होगी डॉल्फिन की निगरानी, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग खरीदेगा 24 बोट

पटना। उत्तर प्रदेश के चौसा बॉर्डर से कटिहार के मनिहारी तक करीब 1300 किमी गंगा नदी के हिस्से में पाई जाने वाली डॉल्फिन को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग 24 बोट के जरिए निगरानी करेगा। पहले चरण में जरूरत के हिसाब से मोटर बोट खरीदी जाएंगी।

इसके ट्रायल के बाद विभाग अतिरिक्त बोट खरीदने पर विचार करेगा। राज्य से गुजरने वाली गंगा नदी और सहायक नदियों में गांगेय डॉल्फिन की संख्या तेजी से बढ़ रही है। डॉल्फिन पर किसी तरह का खतरा न हो, इसके लिए सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जा रही है। विभाग के अधिकारी के मुताबिक कोलकाता से बोट खरीदी जाएगी।

विभाग ने बोट खरीदने के लिए तीन से चार महीना का लक्ष्य रखा है। जिस जिले से गंगा नदी गुजरेगी, वहां के डीएफओ को निगरानी का जिम्मा मिलेगा। एक बोट पर एक रेंज ऑफिसर के साथ-साथ चार फॉरेस्ट गार्ड तैनात रहेंगे। साथ ही बीच-बीच में डीएफओ खुद डॉल्फिन सुरक्षा की जायजा लेने जाएंगे। जरूरत के अनुसार गार्ड की संख्या घटाई-बढ़ाई जा सकती है।

वन विभाग के अधिकारी के मुताबिक गंगा नदी में सबसे अधिक खतरा मछुआरा से रहता है। जाल से मछली मारने के दौरान डॉल्फिन जाल में फंस जाती है। डॉल्फिन जाल में देरी तक फंसे रहने के कारण उसकी मौत हो जाती है। बोट से निगरानी के दौरान रेंज ऑफिसर मछुआरों को डॉल्फिन संरक्षण के लिए जागरूक करेंगे।

उन्हें जाल से निकालने के बारें में बताएंगे। गंगा या उसकी सहायक नदियों में छोटी मछलियों के मारने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। छोअी मछलियां डॉल्फिन के लिए सबसे अच्छा आहार है। बोट से निगरानी करते समय छोटी मछलियों को मारते पकड़े जाने पर जाल को जब्त कर लिया जाएगा।

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