बनारसी पान के शौकीन पूर्व पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू और भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी से लेकर वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी तक हैं. इसी साल जून में बनारस आने पर पीएम नरेंद्र मोदी ने रोड शो के बाद शहर की एक दुकान से पान खाया था. बॉलीवुड के अभिनेता भी गाहे-बगाहे यहां के पान खाते रहते हैं. इसके अलावा फिल्मों में भी बनारसी पान की चर्चा होते रहती है. हालांकि जिस पान पर बनारस के पंसारी घरों में तैयार किया हुआ जर्दा या गुलकंद लपेटते हैं, वह पान बिहार के मगध क्षेत्र की खेतों में उपजता है. इसे यहां मगही पान का पत्ता कहते हैं, जिसे प्रोसेस कर बनारसी पान का नाम दे दिया जाता है.
इस पान को खाने वाले जिस कदर वाहवाही करते नहीं अघाते हैं, ठीक इसके उलट मगध क्षेत्र के किसान अब इस पान की खेती से दूर होते जा रहे हैं. कारण यह कि बिचौलिया तंत्र हावी रहने के चलते पान की खेती से किसानों को पूरा मुनाफा नहीं मिल पा रहा है. यही कारण है कि पान की खेती का दायरा अब घटता जा रहा है.
देश और विदेश में है मगही पान की मांग
मगही पान का अपनी एक अलग विशेषता है और इसकी डिमांड भी जबरदस्त है. मगही पान की मांग देश ही नहीं विदेशों में भी है. मगही पान का क्रेज इतना है कि लोग इसके स्वाद के लिए दूर-दूर तक चले जाते हैं. लोग इसे माउथ फ्रेशनर और आयुर्वेदिक औषधि के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

सिमटता जा रहा है मगही पान की खेती का दयारा
मगध क्षेत्र के गया, नवादा, औरंगाबाद और नालंदा में मगही पान की खेती होती है. गया जिले की बात करें तो करीब 200 किसान मगही पान की खेती से जुड़े हुए हैं. जिले के गुरुआ, आमस, गुरारू और वजीरगंज प्रखंड क्षेत्र के किसान इस खेती करते हैं. हालांकि एक दौर था जब जिले में करीब 25 से 30 एकड़ में पान की खेती होती थी, लेकिन पान में ज्यादा लागत और मेहनत के कारण किसान अब इस खेती से दूर होते जा रहे हैं और यह रकबा घटकर 10 से 15 एकड़ रह गया है. जबकि पहले 600 से 700 किसान इस खेती से जुड़े हुए थे, लेकिन अब आंकड़ा 200 किसानों तक सिमट कर रह गया है.
गया में बाहरी किसान पान की खेती कर उठा लेते हैं सब्सिडी
पान के परंपरागत खेती से जुड़े जिले के गुरुआ प्रखंड क्षेत्र के करताही गांव के किसान मुन्ना कुमार चौरसिया, अशोक चौरसिया, सुदर्शन चौरसिया, रेखा देवी, रंजीत चौरसिया और अजय कुमार चौरसिया ने न्यूज़ 18 लोकल को बताया कि पान की खेती में लागत ज्यादा आ रही है और मुनाफा कम हो रहा है. पान की खेती विरासत में मिली है, लिहाजा इसे छोड़ भी नहीं सकते. सरकार को पान की खेती करने वाले किसानों पर ध्यान देना चाहिए. किसानों का कहना है कि वह गया जिले के किसान हैं और यहीं पान की खेती करते हैं. पान की खेती में सब्सिडी नहीं मिल पाती है. जबकि दूसरे जिले से लोग आकर यहां खेती करते हैं और सब्सिडी का लाभ लेकर चले जाते हैं. यह सरकार की दोहरी नीति है. इसकी जांच होनी चाहिए और जिले के किसानों के लिए सब्सिडी की व्यवस्था करनी चाहिए.

पान के बाजार पर बिचौलिया हावी
पान की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि एक और सरकार कहती है कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए हरसंभव कदम उठा रहे हैं, लेकिन आज भी बिहार के मगध क्षेत्र में पान की खेती करने वाले किसानों की आय में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है. इस खेती में लागत अधिक और मुनाफा कम होता जा रहा है. पान खेती में प्रति कट्ठा तकरीबन 40 हजार की लागत आता है, लेकिन क्षति होने की स्थिति में सरकार प्रति कट्ठा मात्र 1500 रुपये देती है. किसानों को नुकसान के पीछे कई और वजह सामने आ रहे हैं. जिसमें मुख्य रूप से स्थानीय स्तर पर पान की मंडी नहीं होने के कारण दूसरे राज्य के बिचौलिए कम दर पर यहां से पान खरीद कर ले जा रहे हैं. जबकि वह इसी पान को प्रोसेस कर उसे अलग नाम देकर मुनाफा कमा रहे हैं. बनारस में जिस पान को लोग बनारसी पान कहते हैं वह बनारसी पान नहीं बल्कि मगही पान है. मगही पान को प्रोसेस कर बनारसी पान का नाम दे दिया गया है.


