झारखंड ; कभी जेल की दीवार तोड़कर भागने वाले कैदियों को रोकने के लिए बनाई गई झील अब छठ के त्योहार के लिए शहर के लोगों की पहली पसंद है. झील पर बने गोलाकार घाटों की परिधि करीब 4 किलोमीटर लंबी है, जिस पर 10,000 से ज़्यादा सूप और दऊरा रखे जाते हैं. शहर के साथ-साथ 12-15 किलोमीटर दूर से भी व्रती महिलाएं यहां छठ करने आती हैं. इस झील पर 50,000 से अधिक लोग सूर्य को अर्ध्य देते हैं. झील पर अर्घ्य के बाद शाम और सुबह महाआरती का आयोजन होता है.
झील के चारों ओर सीढ़ियों का निर्माण कराया गया है. इन सीढ़ियों पर सूप सजाकर जब उसमें दीप जलाए जाते हैं, तो झील जगमग से झिलमिला उठती है. सड़क किनारे प्रवेश द्वार पर गेट बनाकर लाइटों से सजाया जाता है. फूल और गुब्बारे भी लगाए जाते हैं. पर्व के दौरान यहां गूंजने वाले छठ गीत माहौल को भक्तिमय कर देते हैं. झील घाट पर अर्घ्य के बाद गंगा आरती की तर्ज़ पर महाआरती होती है. इस बार आरती देखने के लिए झील पर जगह-जगह एलईडी स्क्रीन लगाई जाएगी.
ऐसे हो जाता है घाट पर कब्ज़ा
4 किलोमीटर में फैले झील घाट पर छठ करने के लिए शहरवासियों की भीड़ उमड़ती है. कार्तिक माह आते ही घाट पर कब्ज़ा शुरू हो जाता है. लोग सीढ़ियों पर रंग से आकार बनाकर अपने लिए बुक करते हैं. कई लोग घाट पर नाम भी लिखते हैं. यह हज़ारीबाग झील में छठ मनाने का बुकिंग कार्ड जैसा होता है.
सुरक्षा के होंगे पुख्ता इंतजाम
झील घाट पर छठ पूजा कराने वाले महंत ने बताया कि छठ महापर्व के अवसर पर महाआरती एक निश्चित स्थान पर होती थी. लोगों को इस बार हज़ारीबाग झील पर चारों ओर एलईडी स्क्रीन के माध्यम से महाआरती देखने को मिलेगी. छठ व्रतियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो, इसके लिए घाटों की सफाई कराई जा रही है. सुरक्षा के मद्देनज़र पुलिस के जवान भी तैनात किए जाएंगे. सुबह अर्घ्य पड़ने के बाद समाहरणालय परिसर में प्रसाद बांटा जाएगा.
कब और क्यों हुआ था झील का निर्माण?
इस झील का निर्माण अंग्रेज़ी शासनकाल में हुआ था. दरअसल इसके ठीक बगल में हज़ारीबाग सेंट्रल जेल है. जेल की दीवार तोड़कर कैदी भाग जाते थे इसलिए जेल के बगल में झील का निर्माण कराया गया. जेल से फरार कैदियों को झील को तैरकर पार करना होता था. इसमें काफी समय लगता था. भागे कैदियों को पकड़ने के लिए पुलिस को इससे अच्छा खासा समय मिल जाता था.


