नेपाल में देर रात आए भूकंप का असर बिहार पर भी पड़ा। बिहार में जान-माल की क्षति नहीं हुई है, लेकिन नेपाल में अब तक छह लोगों की मौत हो चुकी है। वहां कई घरों को भी नुकसान पहुंचा है। इस भूकंप के झटके दिल्ली, उत्तर प्रदेश व राजस्थान सहित उत्तर भारत के सात राज्यों में भी महसूस किए गए। इस भूकंप ने बिहार में 1936 में आए बड़े भूकंप की याद दिला दी है, जिसके घाव आज भी हरे हैं। 15 जनवरी 1936 को आए उस भूकंप में 11 हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी। बिहार के पूर्णिया से चंपारण और काठमांडू से मुंगेर तक जानमाल की भारी क्षति हुई थी। भूकंप का केंद्र नेपाल में था।

देखते-देखते चली गई 11 हजार लोगों की जान।
वो साल 1934 की मकर संक्रांति (15 जनवरी) का दिन था। ठंड में ठिठुरती दोपहर में ठीक दो बजकर 13 मिनट पर अचानक धरती कांप उठी। फिर एक के बाद एक कई झटकों के साथ जगह-जगह फटी धरती कई लोगों को निगल गई। हजारों घर तबाह हाे गए। देखते-देखते 11 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इसके बाद रूदन व चीख के बीच हर तरफ गम व आंसूओं का सैलाब उमड़ता दिखा।
बिहार के इतिहास का था वो बेहद काला दिन।
रिक्टर स्केल पर 8.5 की तीव्रता वाले उस भूकंप का केंद्र माउंट एवरेस्ट के दक्षिण करीब 9.5 किमी दूर पूर्वी नेपाल में था। इससे नेपाल में भारी क्षति हुई थी। बिहार के पूर्णिया से चंपारण और नेपाल की राजधानी काठमांडू से बिहार के मुंगेर तक जान-माल की सर्वाधिक क्षति हुई थी। वह बिहार के इतिहास का बेहद काला दिन था।

मुंगेर, मुजफ्फरपुर व सीतामढ़ी में बड़ी क्षति।
भूकंप से सर्वाधिक क्षति मुंगेर, मुजफ्फरपुर व सीतामढ़ी में हुई थी। मुजफ्फरपुर में भूकंप के कारण उठे धूल-मिट्टी के गुबार के कारण जबरदस्त वायु प्रदूषण फैल गया था। इससे लोगों का सांस लेना भी कठिन हो गया था। जमीन से निकल आई रेत के कारण कई जगह भूमिगत जल का स्तर कम हो गया था। मुंगेर व मुजफ्फरपुर, चंपारण, सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी, भागलपुर, पूर्णिया आदि नेपाल सीमावर्ती व निकटवर्ती जिलों में घर गिर गए थे। सीतामढ़ी में शायद ही कोई घर बचा था। जमीन पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गईं थीं। मुंगेर शहर मलबा में तब्दील हो गया था। भूकंप के असर से राजधानी पटना भी अछूता नहीं रहा था। पटना में भी कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे। इस भूकंप से नेपाल में काठमांडू, भकतपुर और पाटन में भी बड़ा नुकसान हुआ था। इमारतें ढह गईं थीं। काठमांडू में भी कई सड़कें क्षतिग्रस्त हो गईं थीं।

महात्मा गांधी ने मुंगेर में खुद हटाया मलबा।
भूकंप के कारण मुंगेर में तबाही का मंजर था। मुंगेर किले का प्रवेश द्वार क्षतिग्रस्त हो गया था। मुंगेर के बाजार मलबे में तब्दील हो गए थे। जमालपुर रेलवे स्टेशन पर भी भारी तबाही हुई थी। हालात देखकर तब महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सरोजिनी नायडू जैसे नेताओं ने पहल की। खुद कुदाल और फावड़ा उठाकर मलबा हटाने में जुटे। उन्होंने राहत कार्य में भी हाथ बंटाया। मलबा हटाने का काम कई दिनों तक चलता रहा। असर इतना गहरा था कि एक साल तक यही लगता रहा कि भूकंप कल ही आया हो।

तबाही देख डा. राजेंद्र प्रसाद हुए थे भावुक।
भूकंप का असर सालों तक रहा। इसमें अपनों को खोने वालों के दर्द से बाद में देश के पहले राष्ट्रपति बने देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद कई बार भावुक होते दिखे। डा. राजेंद्र प्रसाद ने 6 दिसंबर 1934 को मुजफ्फरपुर के नामी रईस यदुनाथ बाबू को लिखे अपने पत्र में भूकंप की त्रासदी को लेकर अपने उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने लिखा कि आम लोगों पर आई विपत्ति को सुनकर हृदय दहल जाता है। ऐसे में ईश्वर के सिवा दूसरा कोई सहारा नहीं दिखता है। यही प्रार्थना करता हूं कि ईश्वर आम लोगों को इसे सहन करने की शक्ति प्रदान करें।


