भागलपुर: भागलपुर की बहू स्वर्ण व बहुमूल्य रत्नों से भगवान की पेंटिंग तैयार कर रही है। इस पेंटिंग की मांग विदेशों में भी है। मारवाड़ी टोला की रहने वाली 50 वर्षीय नीलम अग्रवाल दक्षिण भारत की तंजावुर चित्रकला को यहां बढ़ावा देने में जुटी हैं। वे विभिन्न जगहों पर अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी भी करती है। भागलपुर में तंजावुर चित्रकला के कलाकार गिने-चुने ही हैं। वह पिछले 25 वर्षों से यह पेंटिंग बना रही हैं। दूसरी महिलाओं को यह चित्रकारी सिखाकर वह आर्थिक रूप से सबल भी बना रही हैं।
भगवान श्रीकृष्ण पर आधारित थी पहली पेंटिंग
नीलम ने बताया कि उनकी पहली पेंटिंग भगवान श्रीकृष्ण पर आधारित थी। इसके बाद तिरुपति बालाजी, भगवान विष्णु, शिव परिवार, शिव-पार्वती, मंदिर में बजरंगबली आदि की कई आकृतियां उकेरी हैं। उनकी पेंटिंग की मांग भागलपुर के अलावा कोलकाता, दिल्ली, गुवाहाटी, बंगलुरु आदि जगहों पर ज्यादा है। इसके अलावा यूएस में रहने वाली गिरिडीह निवासी एक युवती उनसे संपर्क कर एक पेंटिंग तैयार करवाकर ले गयी है। यह पेंटिंग पांच हजार से एक लाख रुपये तक की बिकती है।
औसतन 20 दिन में तैयार होती है एक पेंटिंग
तंजावुर चित्रकारी में कलाकारों को काफी अधिक वक्त लगता है। नीलम बताती हैं कि औसतन एक पेंटिंग को तैयार करने में 20 दिनों तक का समय लगता है। अगर फोटो की साइज बड़ी हो तो उसमें इससे भी ज्यादा समय लग जाता है। दरअसल, यह चित्रकारी दक्षिण भारत की कला का एक लोकप्रिय नमूना है। इन चित्रों को सोलहवीं शताब्दी में लोकप्रिय बनाया गया था।
प्रत्येक पेंटिंग में एक कथा छिपी होती है। सामान्य रूप से पेंटिंग में हिन्दू देवी-देवताओं और संतों की तस्वीर उकेरी जाती है। उन्होंने बताया कि तंजावुर पेंटिंग को पूरी तरह से हाथ से बनाया जाता है और इसमें किसी प्रकार से मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। प्लाइवुड पर पेंटिंग की जाती है। देवता और देवियों के वस्त्र और आभूषण के लिए स्वर्ण दुग्ध या भस्म का भी उपयोग होता है। इस कारण पेंटिंग देखने में अद्भुत लगती है।
कोलकाता में देखी थी पहली बार यह पेंटिंग
नीलम ने बताया कि उन्होंने तंजावुर चित्रकारी पहली बार कोलकाता में देखी थी। बचपन से उन्हें पेंटिंग का शौक था। इसके बाद वह पूरी तन्मयता से पेंटिंग बनाने में जुट गयीं। इस काम में उनके पति गोविंद अग्रवाल ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया। आज 25 साल से अधिक समय से वह पेंटिंग बना रही हैं। उनकी चाहत है कि महिलाएं इस कला को अपनाकर आर्थिक रूप से संपन्न हो सकें। कई युवतियों को उन्होंने इस कला की ट्रेनिंग भी दी है।