मुजफ्फरपुर : आज हम आपको दो ऐसे जुड़वा भाइयों की कहानी बताने जा रहे हैं जो पराक्रम की मिसाल हैं. मुजफ्फरपुर के बेला के रहने वाले रामेश्वर सिंह और भरत प्रसाद सिंह जुड़वा भाई हैं. रामेश्वर सिंह ने भारतीय सेना में पैरा कमांडो के तौर पर सेवा दी है. वह कारगिल और 26/11 जैसे बड़े आर्मी ऑपरेशन में शामिल हो चुके हैं. वहीं भरत प्रसाद सिंह भारतीय सेना की टुकड़ी ‘द गार्ड’ का अहम हिस्सा थे. कारगिल जंग के दौरान आईईडी ब्लास्ट में भरत बुरी तरह घायल भी हो गए थे.
वर्ष 1997 में मात्र 19 वर्ष की आयु में रामेश्वर सिंह सेना में बहाल हुए और महज दो साल बाद ही उन्हें ऑपरेशन विजय में शामिल होने का मौका मिला. पैरा कमांडो रह चुके रामेश्वर सिंह ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान द्रास सेक्टर की मश्कोह घाटी पर भी दुश्मनों ने कब्जा कर बंकर बना लिए थे. अधिक ऊंचाई पर होने से भारतीय सैनिकों को वहां पैदल चलकर पहुंचना मुश्किल था, इसलिए उनको मार भगाने के लिए पैराशूट रेजिमेंट की यूनिट-5 पैरा स्पेशल कमांडो फोर्स को लगाया गया. इस यूनिट में वे भी शामिल थे. वर्ष 2014 में उन्होंने वीआरएस ले लिया. लेकिन आज भी मश्कोह घाटी में हुआ भीषण युद्ध उन्हें याद है.72 घंटे तक बिना भोजन-पानी के किया युद्ध
रामेश्वर बताते हैं कि उनकी यूनिट सियाचिन से लौटी थी. इसी बीच कारगिल पहुंचने का आदेश मिला. घाटी में उतरने के बाद 72 घंटे तक बिना भोजन-पानी के दुश्मनों से लगातार लड़ते रहे. जवानों के बलिदान और साहस के बल पर आठ जुलाई तक मश्कोह घाटी की अंतिम पोस्ट को भी दुश्मनों से उन लोगों ने मुक्त करा लिया गया. वे ऑपरेशन रक्षक एवं पराक्रम में भी शामिल थे. ब्लैक कैट कमांडो भी रह चुके हैं. वहीं भरत प्रसाद सिंह भी भारतीय सेना के द गार्ड का हिस्सा रहे हैं. कारगिल युद्ध में ब्लास्ट में घायल हो गए. भरत कहते हैं कि हम दोनों भाइयों को शुरू से ही सेना में जाने का जज्बा था.