पूर्वी चम्पारण : क्या आपने कभी किसी मंदिर या मठ में एक साथ 1000 से ज्यादा शालिग्राम देखा है ? नहीं, तो चलिए आज हम आपको पूर्वी चंपारण के एक ऐसे मठ के बारे में बताते हैं, जहां 1000 से ज्यादा शालिग्राम विराजमान हैं. यहां नित्य उनकी पूजा आराधना होती है. दरअसल, पूर्वी चंपारण के मोतिहारी के वृक्षेस्थान स्थित रामजानकी हनुमान मठ में स्थित राम जानकी मंदिर में पिछले 200 से ज्यादा वर्षों से 1000 से ज्यादा शालिग्राम की पूजा-आराधना होती चली आ रही है. यहां कुछ शालिग्राम बड़े-बड़े आकार के हैं, तो वहीं कुछ काफी छोटे आकार के भी हैं.
मठ के संचालक महंत रामसागर दास ने बताया कि इस मठ की स्थापना महंत रामदास ने 1805 में की थी. उसके बाद गुरु-शिष्य परंपरा से महंत धीरम दास, महंत गरीब दास, महंत सियाराम दास, महंत नरसिंह दास यहां के महंत हुए. अभी रामसागर दास इस मठ के महंत हैं. महंत रामसागर दास कहते हैं कि जिस तरह एक मनुष्य प्रतिदिन स्नान, भोजन आदि करता है, इसी तरह से भगवान को भी प्रतिदिन सुबह में स्नान कराया जाता है, फिर पूजा आदि के बाद भोग लगाया जाता है. वहीं दोपहर में भोजन का भोग लगाया जाता है और विश्राम दिया जाता है. रात्रि के समय भी भोग आरती के बाद मंदिर का पट बंद होता है.

कई विशेष तरह के शालिग्राम मौजूद
रामसागर दास ने दावा करते हुए बताया कि उनके पास कई ऐसे शालिग्राम हैं, जिस पर चांदी की परत प्राकृतिक रूप से लगी हुई है. इस तरह के शालिग्राम अमुमन कहीं देखने को नहीं मिलते हैं. वो कहते हैं कि शालिग्राम विशेष तरह के पत्थर होते हैं, जो नेपाल से निकलकर भारत के रास्ते बहकर गंगा नदी में मिलने वाली गंडक नदी में पाए जाते हैं. परंपरागत हिंदू परिवारों में शालिग्राम को भगवान राम अथवा भगवान विष्णु का विग्रह मानकर पूजा की जाती है. कहीं-कहीं इनको ठाकुर जी की भी संज्ञा दी जाती है. महंत ने बताया कि जन्माष्टमी के मौके पर यहां भगवान के लिए झूला लगाया जाता है.