पितृपक्ष के दूसरे दिन गया के इस पिंड वेदी पर करें पिंडदान! यहां पर पिंड पाकर पितर हो जाते हैं तृप्त

गया : पिंडदान को लेकर गयाजी का काफी महत्व है. यहां अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान और तर्पण करते है. पितृपक्ष में पिंडदान का महत्व अधिक बढ़ जाता है. यही कारण है कि यहां पितृपक्ष में देश-विदेश से काफी संख्या में पिंडदानी आते है. पिंडदान त्रिपाक्षिक श्राद्ध के तहत 55 पिंडवेदी पर कर्मकांड एवं तर्पण करते हैं, जिसमें कई प्रमुख पिंडवेदी प्रेतशिला, रामशिला, उत्तर मानस, विष्णुपद वैतरणी, सीताकुंड, अक्षयवट आदि है जहां लोग पिंडदान और तर्पण करते है.

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प्रेतशिला पहुंचकर ब्रह्मकुंड में स्नान तर्पण कर पिंडदान करें

पितृपक्ष के दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है. फिर वहां से नीचे आकर कागबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए. द्वितीय दिन स्नान कर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर प्रेतशिला सहित चार वेदियों पर जाना होता है. सर्वप्रथम प्रेतशिला पहुंचकर ब्रह्मकुंड में स्नान तर्पण कर पिंडदान करें. तीर्थों में श्रद्धा रखकर प्रणाम करके पवित्र जल से पवित्र स्थान पर बैठकर श्राद्ध पिंड दान करना चाहिए. ब्रह्मकुंड श्राद्ध करके प्रेतशिला पर सीढ़ी चढ़कर ऊपर पिंड वेदी पर सत्तू से पिंडदान करें. अगर कोई चढ़ने में असमर्थ हो तो नीचे ही पिंडदान कर लें.

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दूसरे दिन का महत्व बताते हुए पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि पूर्णिमा के दिन फल्गु स्नान का महत्व है. इसी दिन दो-तीन वेदियो पर तीर्थ श्राद्ध किया जाएगा. इस बार तिथि मिलकर आ रही है इसलिए दूसरे दिन पूर्णिमा के दिन प्रेतश‍िला श्राद्ध भी किया जाएगा. वहीं गया पाल पंडा प्रतिनिधि आचार्य पंडित ऋषिकेश गुरदा बताते हैं कि पितृपक्ष के दूसरे दिन फल्गु नदी में स्नान करने के बाद अपने तीर्थ पुरोहित के पाव पूजन करके गया श्राद्ध आरंभ करते हैं. इन्होंने बताया कि फल्गु नदी भगवान विष्णु के दाहिने पैर के अंगुठे से इसका उद्गम है इसलिए इसको विष्णु पादो दकी गंगा कहा जाता है.

इस दिशा की ओर मुख कर करें प्रार्थना

फल्गु श्राद्ध के बाद श्रद्धालु प्रेत शिला वेदी पर जाते हैं और यहां अपने पितरों का पिंडदान करते हैं. यहां पिंडदान करने से प्रेतयोनि के पितरों को मुक्ति मिल जाती है. यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है. पिंडदान के दौरान सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर, पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करें कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं. वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं. फिर उनके नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना करें. ऐसा करने से उनके कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है.

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