बिहार के नवादा में बागियों ने बिगाड़ा गणित, महागठबंधन के लिए अपने ही बने चुनौती

बिहार : हरे-भरे जंगलों, झरनों की वजह से बिहार का कश्मीर कहे जाने वाले नवादा में कुछ साल पहले तक नक्सली हिंसा चरम पर थी, पर अब हालात बेहतर हैं। हालांकि, यहां से चुनाव लड़ रहे भाजपा नेता व एनडीए प्रत्याशी विवेक ठाकुर और राजद नेता व महागठबंधन के उम्मीदवार श्रवण कुशवाहा को सुकून नहीं है। दरअसल, इस सीट पर दोनों ही प्रमुख प्रत्याशी बागियों और अंतर्कलह से जूझ रहे हैं।

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नवादा सीट पर बाहरी प्रत्याशियों का ज्यादातर वर्चस्व रहा है। 14 बार यहां से बाहरी ही चुने गए हैं और तीन बार स्थानीय। हालांकि, यहां के लोग जिस तरह से स्वागत करते हैं उसी तरह से नाराज होने पर बाहर का रास्ता भी दिखा देते हैं। यहां पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान है। इस सीट का गौरवशाली इतिहास रहा है। स्वामी सहजानंद सरस्वती और जयप्रकाश नारायण की यह कर्मस्थली रही तो बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की जन्मभूमि रही है।

अंतर्कलह से आफत
नवादा की राजद विधायक विभा देवी, रजौली के राजद विधायक प्रकाश वीर और नवादा से एमएलसी अशोक कुमार ने पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की अवहेलना करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बागी बिनोद कुमार की सभा को हिसुआ में संबोधित किया। वहीं, राजद नेता उमेश यादव कहते हैं कि श्रवण अगर जीते तो कोई गारंटी नहीं वह पार्टी में बने रहेंगे। ऐसे में उनके साथ कैसे कोई खड़ा हो सकता है। बिनोद कुमार जेल में बंद पूर्व मंत्री राजबल्लभ यादव के भाई और विभा देवी उनकी भाभी हैं। दूसरी तरफ, भोजपुरी गायक गुंजन सिंह ने भाजपा के राज्यसभा सदस्य और प्रत्याशी विवेक ठाकुर को अच्छा खासा परेशान किया हुआ है। गुंजन पहले भाजपा से टिकट मांग रहे थे, नहीं मिला तो निर्दलीय ही मैदान में कूद गए। हालांकि, भाजपा के दिग्गज नेता डॉ. सीपी ठाकुर के बेटे विवेक मानते हैं इससे ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

आखिर मतदाता के मन में क्या
नवादा के रास्ते में हिसुआ कस्बे के जितेंद्र कुशवाहा कहते हैं, सवाल यह नहीं कि हमें विवेक ठाकुर जैसे बाहरी प्रत्याशियों से आपत्ति है। पर, जब वह हमारे लिए कुछ करते ही नहीं तो वोट क्यों दें। वहीं, दिनेश ठाकुर कहते हैं, सड़कों को देखो काम तो हुआ है। यह काम मोदी के बिना नहीं हो सकता था। इसी वजह से राजद उम्मीदवार श्रवण इस चुनाव में बाहरी को मुद्दा बनाना चाहते हैं। लंबे समय तक बाहरी प्रत्याशियों के जीतने से कुछ ऐसे स्थानीय मुद्दे हैं, जो हमेशा उछलते हैं। जैसे सिंचाई की बेहतर सुविधा, वारिसलीगंज की बंद चीनी मिल, अपर सकरी जल परियोजना, ककोलत जल प्रपात का सौंदर्यीकरण। दिलचस्प यह कि ककोलत जल प्रपात की वजह से ही नवादा को बिहार का कश्मीर कहा जाता है।

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