प्रकाश सिन्हा (संपादक) की कलम से।
मुज़फ़्फ़रपुर | जिस व्यक्तित्व ने अपने जीवन को समाज, खेल और युवाओं के उत्थान को समर्पित कर दिया — उसी व्यक्तित्व स्व. चंद्रशेखर कुमार उर्फ चंदू जी को उनके अपने समाज से मरने के बाद भी वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वे वास्तविक हकदार थे। राजनीति, गुटबाजी और संगठन के भीतर का मतभेद इस हद तक गहराया हुआ है कि अब श्रद्धांजलि सभा जैसा पवित्र आयोजन भी सियासी समीकरणों में उलझ कर रह गया है।

चंदू जी हाल ही में सम्पन्न मुज़फ्फरपुर चित्रगुप्त एसोसिएशन के चुनाव में संगठन मंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। वे वर्षों से समाज के लिए समर्पित कार्य कर रहे थे और युवाओं में उनकी गहरी पकड़ थी। लेकिन चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, और ऐसा माना जा रहा है कि यह हार उनके सामाजिक कामों की वजह से नहीं, बल्कि एसोसिएशन के कुछ मठाधीशों की पूर्व नियोजित राजनीतिक चालों के कारण हुई।

उनकी असमय मृत्यु ने जहां पूरे मुज़फ्फरपुर और उत्तर बिहार के खेल और सांस्कृतिक जगत को शोकसंतप्त कर दिया, वहीं दूसरी ओर चित्रगुप्त समाज के भीतर एक अजीब सी चुप्पी देखने को मिली। कई सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों द्वारा उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित की गईं, लेकिन मुज़फ्फरपुर चित्रगुप्त एसोसिएशन, जिससे वे वर्षों से जुड़े रहे, अभी तक उनके लिए कोई श्रद्धांजलि सभा तक नहीं आयोजित कर सका।

आख़िर क्यों?
इस प्रश्न का उत्तर सीधा है — राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता।
सूत्रों की मानें तो चंदू जी की मृत्यु के बाद भी एसोसिएशन के अंदर मौजूद कुछ गुटबाज नेताओं ने श्रद्धांजलि सभा के आयोजन में रुचि नहीं दिखाई। उनका यह व्यवहार यह दर्शाता है कि संस्था में व्यक्तिगत अहम और सत्ता की होड़, संवेदना और सम्मान से बड़ी हो चुकी है।

इस विषय पर जब एसोसिएशन के वर्तमान महामंत्री अजय श्रीवास्तव से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा —
“बोर्ड की अगली मीटिंग में इस पर विचार किया जाएगा और बहुत जल्द निर्णय लिया जाएगा कि श्रद्धांजलि सभा कब आयोजित की जाए।”
हालांकि यह बयान औपचारिक लग सकता है, लेकिन समाज के भीतर एक बड़ा वर्ग इसे टालमटोल और राजनीतिक चुप्पी के रूप में देख रहा है। सवाल यह नहीं है कि श्रद्धांजलि कब होगी, सवाल यह है कि अब तक क्यों नहीं हुई?

समाज में बढ़ रही नाराज़गी
चित्रांश समाज के कई युवा, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता इस पूरे घटनाक्रम से आहत हैं। उनका मानना है कि चंदू जी केवल व्यक्ति नहीं, विचार और प्रेरणा थे, और यदि समाज उन्हें सम्मान नहीं दे पाया, तो यह केवल उनकी नहीं, पूरी पीढ़ी की हार मानी जाएगी।
“श्रद्धांजलि सभा कोई एहसान नहीं, यह समाज का नैतिक कर्तव्य है।”
यदि समाज अपने सच्चे सेवक को सम्मान नहीं दे पा रहा है, तो यह चिंतन का विषय है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं।
स्व. चंद्रशेखर कुमार को नमन करते हुए यह कहना होगा कि
“एक सच्चे कार्यकर्ता की पहचान उसके जीवन से नहीं, उसके बाद समाज के व्यवहार से होती है।”
अब समय है कि चित्रगुप्त एसोसिएशन राजनीति से ऊपर उठकर इस मुद्दे पर सकारात्मक पहल करे और यह साबित करे कि समाज अपने सपूतों को मरने के बाद भी याद रखता है, सम्मान देता है।
अब श्रद्धांजलि केवल रस्म नहीं, जिम्मेदारी बन चुकी है।


