अश्विनी (वरिष्ठ पत्रकार) की कलम से।
जमशेदपुर : झारखंड की सियासत में घाटशिला विधानसभा सीट एक बार फिर से सुर्खियों में है। झारखंड के पूर्व शिक्षा एवं निबंधन मंत्री स्व. रामदास सोरेन के निधन के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र सोमेश सोरेन को राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया गया है। परिवार के भीतर आपसी सहमति के बाद तय हुआ कि पिता की राजनीतिक विरासत अब सोमेश संभालेंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस फैसले का सम्मान किया और सोरेन परिवार को पूरा सहयोग देने का भरोसा दिलाया।

हेमंत सोरेन ने निभाई परंपरा, जताया सम्मान
रामदास सोरेन के अंतिम संस्कार से लेकर श्राद्ध भोज तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विशेष रुचि ली। प्रशासन ने भी उनकी इच्छा के अनुरूप समुचित व्यवस्था की। श्राद्ध भोज में राज्यपाल संतोष गंगवार, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत कई मंत्रियों ने शिरकत की। हेमंत सोरेन अपनी पत्नी एवं गांडेय विधायक कल्पना सोरेन के साथ शामिल होकर परिवार को सांत्वना दी।
उपचुनाव की तैयारी तेज, नवंबर तक संभावित मतदान
रामदास सोरेन के निधन से घाटशिला सीट खाली हो चुकी है। संभावना है कि बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही घाटशिला विधानसभा का उपचुनाव भी नवंबर तक कराया जाएगा। सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस चुनाव में सहानुभूति का बड़ा फैक्टर काम करेगा।

भाजपा से बाबूलाल सोरेन की चर्चा, कांग्रेस पर निगाहें
भाजपा की ओर से अभी उम्मीदवार तय नहीं है, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को टिकट मिल सकता है। पिछली बार बाबूलाल ने ही रामदास सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़ा था। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप कुमार बलमुचू भी समीकरणों में अहम किरदार निभा सकते हैं। घाटशिला की राजनीति में बलमुचू का आज भी मजबूत जनाधार है।
“करो या मरो” के हालात
वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी रघुवंशी मानते हैं कि घाटशिला की सियासत में इस बार हालात “करो या मरो” जैसे बनते दिख रहे हैं। झारखंड गठन के बाद लंबे समय तक यहां प्रदीप बलमुचू का दबदबा था। लेकिन रामदास सोरेन ने कठिन संघर्ष और जमीनी पकड़ से इस सीट को झामुमो के पाले में लाया। अब सोमेश को वही विरासत संभालनी है। अगर वे उपचुनाव हारते हैं तो उनकी आगे की राजनीति बेहद कठिन हो जाएगी। वहीं, बाबूलाल सोरेन के लिए भी हार घाटशिला में भविष्य की राह पथरीली बना देगी।

सोमेश के सामने चुनौती, साथ देंगे विक्टर और मंगल
सोमेश सोरेन राजनीति में नए हैं। उनके साथ चचेरे भाई विक्टर सोरेन और मंगल सोरेन सक्रिय रहेंगे, जो पहले से ही राजनीतिक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। संयुक्त परिवार होने के कारण सोरेन परिवार के बीच एका भी बनी हुई है। यही वजह है कि सहानुभूति और परिवार की एकजुटता दोनों ही सोमेश के पक्ष में बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं।
रणनीतिक सहयोगी की भूमिका में वीर सिंह सुरीन
झारखंड आंदोलनकारी और पूर्व सांसद स्व. सुनील महतो के प्रतिनिधि रह चुके वीर सिंह सुरीन को इस उपचुनाव में बड़ी भूमिका निभाने वाला माना जा रहा है। वे लंबे समय से सोरेन परिवार के करीबी रहे हैं और आम जनता के बीच गहरी पकड़ रखते हैं। जानकारों का मानना है कि वीर सिंह सुरीन जैसे रणनीतिक सहयोगी सोमेश सोरेन के लिए मार्गदर्शक की तरह साबित होंगे।

निष्कर्ष
घाटशिला उपचुनाव सिर्फ एक विधानसभा सीट का चुनाव नहीं होगा, बल्कि यह झामुमो और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई साबित होगा। सहानुभूति बनाम संगठन की ताकत, नए चेहरे बनाम पुराने दावेदार और जमीन से जुड़े कार्य बनाम अनुभव—यही इस चुनाव की असली कसौटी होगी। सबकी नजरें इस पर टिकी होंगी कि रामदास सोरेन की विरासत को सोमेश कितनी मजबूती से आगे बढ़ा पाते हैं।