पी’ड़ितों को न्याय दिलाने वाली महिलाओं को सरकार एक अदद टॉयलेट भी नहीं दे पा रही है. कोर्ट परिसर में महिलाओं के लिए वॉशरूम नहीं है, जिस वजह से उन्हें दि’क्कत होती है. उन्हें बाहर के सुलभ कॉम्प्लेक्स का सहारा लेना प’ड़ता है. इस पर एक सर्वे भी सामने आया है, जिसमें ये बात सामने आई है.दरअसल, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की ओर से सर्वे किया गया है. ये सर्वे जिला कोर्ट के इंफ्रा’स्ट्रक्चर पर आधारित है.

इसमें सामने आया कि देश के 15 फीसदी कोर्ट कॉम्प्लेक्स में महिलाओं के लिए टॉयलेट नहीं है. और जहां है भी, वहां पर सिर्फ 40 फीसद ही फंक्शनल है. और कुछ साफ-सुथरे नहीं हैं.इसके अलावा, 39 फीसदी कोर्ट कॉम्प्लेक्स में पोस्ट ऑफिस, बैंक, कैफेटेरिया, फोटो कॉपी की दुकानें, टाइपिस्ट, नोटरी वगैरह हैं, बाकी के कोर्ट में तो बैठने तक की सुविधा नहीं है. जबकि सरकार की ओर से 7 हजार करोड़ रुपए कोर्ट कॉम्प्लेक्स को बेहतर और वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए खर्च किए गए थे.

सर्वे के मुताबिक, बिहार और राजस्थान के कोर्ट में बैठने की जगह नहीं है. जबकि दिल्ली, केरल, मेघालय, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के जिला न्यायालयों की स्थिति बेहतर है. वहीं, बिहार, मणिपुर, नगालैंड, पश्चिम बंगाल और झारखंड के ज्यूडिशियल इं’फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति बहुत बु’री है.सुरक्षा के लिहाज से बात करें तो सिर्फ 11 फीसद कोर्ट कॉम्प्लेक्स में ही वर्किंग बैगेज स्कैनिंग फैसिलिटी है. और बाकी में नहीं.

इंदौर हाईकोर्ट में व’कालत कर रहीं अनामिका ने बताया कि कोर्ट में महिलाओं के लिए वॉशरूम की बहुत बु’री हा’लत है. जिला न्यायालय में तो महिलाओं के लिए कोई टॉयलेट नहीं है. कॉम्प्लेक्स के बाहर एक सुलभ शौ’चालय है, सबको वहीं जाना पड़ता है. यही हाल खं’डवा, सतना के न्यायालयों का भी है. कॉमन टॉयलेट है, महिलाओं के लिए अलग से नहीं है. बहुत परेशानी होती है. कई जगह है नहीं और जहां हैं वहां पर गं’दगी है. कुछ जगहों पर ही साफ-सफाई है.

Input: Oddnaari