पटना : पिछले 52 साल में बिहार के औसत तापमान में करीब डेढ़ से दो डिग्री का इजाफा हुआ है. बढ़ रहे तापमान से बिहार में रह’स्यमयी बु’खार मसलन च’मकी और डें’गू जैसे बु’खार और ख’तरनाक होते जा रहे हैं. इस बात का जिक्र ‘स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज’ में किया गया है.

इसमें बताया गया है कि अगर धरती के ब’ढ़ते तापमान पर का’बू नहीं पाया गया, तो हमारी जैव समृद्धि के सामने सं’कट ख’ड़ा हो जायेगा. दरअसल बढ़ते तापमान से डें’गू और दूसरे बु’खारों के नेच’र में बदलाव आया है, जिसकी वजह से इनकी जल्दी पहचान नहीं हो पा रही है. दरअसल बिहार की धरती पर पर्यावरणीय विसंगतियां ते’जी से बढ़ रही हैं. औसत बारिश में 30 से 40 फीसदी की कमी आयी है. पर्यावरणीय विसंगति का ही यह आलम है कि उत्तरी बिहार की भौगोलिक पहचान बा’ढ़ और दक्षिणी बिहार की पहचान सूखे से हो रही है.

बिहार के वेटलैंड्स (नम भूमि) या ताल तलैया की लाखों हेक्टेयर भूमि अाबादी के बोझ तले गुम हो चुकी है. उदाहरण कांवर झील है. बिहार प्र’दूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष एवं पर्यावरणविद अशोक घोष के मुताबिक बिहार की प्रसिद्ध कांवर झील का विस्तार 1984 में 6786 हेक्टेयर में था. वर्ष 2004 में इसका विस्तार घटकर 6043 हेक्टेयर और 2012 में घटकर 2012 हेक्टेयर रह गया है. बिहार की धरती के बढ़ते तापमान की वजहों में एक वजह नम भूमि का घ’टना भी है.
एक तिहाई से भी कम बचे वेटलैंड
राष्ट्रीय वेटलैंड एटलस के मुताबिक बिहार में वर्ष 2010 में 4416 वेट लैंड्स (नम भूमि) की पहचान की गयी थी, जिसमें 100 हेक्टेयर वाले 130 वेटलैंड्स थे. इसके अलावा 17582 वेट लैंड्स (2.25 हेक्टेयर से छोटे) की पहचान भी की गयी थी. उस समय बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में वेटलैंड का हिस्सा 4032.09 वर्ग किमी (लगभग 4.4 प्रतिशत) था. अब यह एक तिहाई से भी कम बचा है. तापमान की अधिकता बै’क्टीरियल और ज’र्म ग्रोथ को कई गुना बढ़ा देती है. अधिक तापमान और बढ़ी हुई आ’र्द्रता बै’क्टीरियल संक्र’मण की र’फ्तार में अ’प्रत्याशित इजाफा करती है. अगर स्थायी तौर पर तापमान बढ़ा हुआ रहे तो निश्चित तौर पर वहां बी’मारियां पैर पसारने लगती हैं. इस दौ’रान ग्रीन हाउस गैसें भी ख’तरनाक रूप ले लेती हैं. ‘

– प्रो परिमल कुमार खान, जूलॉजी, पटना विश्वविद्यालय

