दु’ष्कर्म पीड़िताओं के ज’ख्म भ’रते ही नहीं, न्याय पाने के लिए सिस्टम में उसका बार-बार मानसिक ब’लात्कार होता है। रसूखदारों की ऊंची पैठ और लंबी कानूनी प्रक्रिया के कारण वे न्याय के लिए भ’टकती रहती हैं।
राजधानी में साल दर साल ऐसे मा’मले बढ़ते जा रहे है। स्थानीय थानों की संवेदनहीनता के कारण पी’ड़िताओं की तो पहले प्रा’थमिकी ही द’र्ज नहीं हो पाती। इसके बाद इतना वि’लंब हो जाता है कि मेडिकल में भी साक्ष्य नहीं मिलता। इससे आ’रोपियों को लाभ मिल जाता है।
लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी अ’पराधी खु’लेआम घू’मते हैं। पिछले दस सालों में ब’लात्कार के काफी माम’ले बढ़े हैं। जानकार बताते हैं कि मा’मले तो बहुत हो रहे हैं, लेकिन लिखित में कम ही सामने आते हैं। कई केस प्रा’थमिकी द’र्ज नहीं होने के कारण आं’कड़ों में नहीं आ पाते।
आं’कड़ों पर गौर करें तो 2009 से लेकर 2018 और 2019 में सबसे अधिक मा’मले दु’राचार के आए हैं। 2018 में कुल 123, जबकि इस साल मई तक विभिन्न थानों में कुल 41 ब’लात्कार के मा’मले द’र्ज हुए हैं। बिहार राज्य महिला आयोग में वर्ष 2018 में आए 2672 मा’मलों में 23 दु’राचार के के’स आए, जबकि वर्ष 2017 और 2016 में क्रमश: 9 और 12 ऐसे मा’मले आए।



Input: Hindustan