
शनि की मंथर गति से चलने के कारण ये ग्रह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष यात्रा करता है।इस प्रकार एक वर्तमान के पहले एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए ये तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। शनि की यही दशा साढ़े साती कहलाती है। शनि अमावस्या को शनि से संबंधित उपाय करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती हैसाढ़ेसाती, ढैया न भी हो तब भी शनि जातक की कुंडली में अपनी बैठकी के अनुसार राशि परिवर्तित होते ही अपना असर दिखाना शुरू कर देते हैं।

इससे बचने के लिए कुछ विशेष उपाय करने आवश्यक हैं। अषाढ़ मास में शनि की साढ़ेसाती की पूजा कराने से जातक को लाभ पहुंचता है।इसके अलावा जिन जातकों पर शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया चल रही है वे जातक शनि अमावस्या पर शनिदेव की साधना कर उनके प्रकोप से बच सकते हैं। शनि के प्रकोप से बचने के लिये शनि अमावस्या को शनिदेव की साधना करनी चाहिये। शनिदेव की शांति के लिये शनि सत्वराज, शनि स्त्रोतम् या शनि अष्टक का पाठ करें।

शनि का पूजन तथा तेल से अभिषेक करने से शनि की साढ़े साती, महादशा का संकट और शनि आपदाओं से मुक्ति मिलती है। शनि देव को तेल से अभिषेक करें तथा काला कपड़ा, काले तिल, काली उड़द आदि अर्पित करने शनि देव प्रसन्न होते हैं। शनि देव की कुदृष्टि से कार्य में बाधाएं आती हैं, उनसे भी मुक्ति मिल जाती है। इन बाधाओं को का’टने और उनके निवारण के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए।
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
ॐ शं शनैश्चराय नम:
