अयोध्या में वि’वादित स्थल को मंदिर और मस्जिद को लेकर चल रही सु’नवाई के बाद हाईकोर्ट ने वि’वादित स्थल की जांच के लिए खुदाई करने के निर्देश दिए। उसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से जीपीआर सर्वे कराया गया। सर्वेक्षण विभाग ने ये काम टोजो विकास इंटरनेशनल नाम की कंपनी से कराया। यहां पर खुदाई का काम अगस्त-अक्टूबर माह में कराया गया। खुदाई करने के बाद इसकी एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें बताया गया कि वहां जमीन के अंदर कुछ इमारतों के 184 अवशेष और अन्य चीजें मिली हैं।
कोर्ट ने हिंदु मुस्लिम पक्षों को सुनने के बाद मार्च 2003 में सिविल प्रोसीजर कोड के तहत एएसआई( भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ) विभाग को आदेश दिया कि वो वहां खुदाई करके सबूत की तला’श करें। मगर ये खुदाई संबंधित विवादित परिसर ( केवल उस स्थान को छोड़कर जहां दिसंबर 1992 में वि’वादित मस्जिद ध्व’स्त होने के बाद से तम्बू के अंदर भगवान राम की मूर्ति रखी है) के बाहर की जाए। उसके बाद सबूत तलाशे जाए।एएसआई रिपोर्ट में कहा गया कि 100 साल के इतिहास में कोर्ट कमीशन के तौर पर इस तरह के काम का उसका यह पहला अनुभव है।
इसी के साथ अदालत को यह भी बताया गया कि उस इ’लाके की इतनी गहराई तक खुदाई हो चुकी है कि अब दोबारा खुदाई के लिए कोई नया आयोग बनाना इसके लिए व्यावहारिक नहीं होगा। अ’दालत का नि’ष्कर्ष यह था कि अंतिम फैसला देते समय बाकी सबूतों के साथ ही इसके निष्कर्षों पर भी विचार किया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने ये आदेश भी दिया कि जब एएसआई वहां पर खुदाई का काम करें उस समय वहां पर दोनों पक्ष मौजूद रहें।
खुदाई का काम दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों, वकीलों की मौजूदगी में हो। एएसआई की टीम में भी दोनों समुदायों के कुल 14 पुरातत्व विशेषज्ञ शामिल थे।कोर्ट के आदेश पर खुदाई की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी होती रही। इस दौ’रान फैजाबाद में तै’नात दो जज प्रेक्षक के तौर पर हमेशा उपस्थित रहे। यह खुदाई 12 मार्च से 7 अगस्त तक हुई। इसके बाद एएसआई ने दो भागों में इसकी विस्तृत रिपोर्ट, फोटोग्राफ, न’क्शे और स्केच भी तैयार किए। सुन्नी वक्फ बोर्ड इस पर भी राजी नहीं हुआ।



