मुजफ्फरपुर में जब्त की गई गाड़िया बनी कबाड़

चौचक चर्चा ! लेखक- खबरी जार्ज खान

मुजफ्फरपुर में लगने वाले रोजाना गाड़ियों के जाम के झाम को समझने के लिए शहर के सदर थाने पर निगाह डालना जरूरी है. उससे भी जरूरी है जिले के सभी थानों में जब्त किए गए वाहनों की 15 सालों से नहीं हुई निलामी की. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन थानों में करोड़ों की गाड़िया सड़ रही हैं. मुजफ्फरपुर शहर में, तो जब्त की गई गाड़िया कबाड़ बन चुकी हैं और रख-रखाव में लापरवाही ऐसी है कि उनकी वजह से शहर में लोग जाम के झाम से परेशान रहते हैं.


कहा जाता है कि निलामी इसलिए नहीं होती क्योंकि थाना प्रभारियों को इसमें इंटररेस्ट नहीं होता. निलामी प्रक्रिया में शामिल होने वाले बाबू से लेकर बड़े ऑफिसर तक अपने रिश्तेदारों के लिए जब्त की गई गाड़ी सस्ते में चाहते हैं. इसलिए निलामी का पंगा कोई लेना नहीं चाहता. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मुजफ्फरपुर जिले में पुलिस कार्रवाई के दौरान जब्त गाड़ियां थानों में सड़ रही हैं. खुले आसमान के नीचे गाड़ियां रखी जाती हैं. जगह कम पड़ने पर एक गाड़ी को दूसरे के ऊपर रख दिया जाता है. धीरे-धीरे उन गाड़ियों के इंजन, टायर और सारी मशीनरी कहां गायब हो जाती है. ये ना थाने वाले बताते हैं और ना ही गाड़ी का मालिक. गाड़ी मालिक यदि अपनी गाड़ी की तलाश में दो दिन के अंदर थाने पहुंचा, तो गाड़ी सलामत मिलेगी. तीसरे दिन सिर्फ गाड़ी का ढांचा मिलेगा. बाकी कल पूर्जे गायब मिलेंगे.

जिले के सभी थानों और ओपी में हजारों दोपहिया से लेकर बड़ी गाड़ियां जब्त कर रखी गई हैं. इसके लिए कई थानों के पास पर्याप्त जगह भी नहीं है. कुछ थानों ने सड़कों पर जब्त गाड़ियां रख दी हैं. जहां जगह है, वहां भी गाड़ियों को बेतरतीब ढंग से रखा गया है. उसपर शेड आदि नहीं है. इससे हर मौसम की मार पड़ती रहती है. एक बाइक को थाना स्तर से छुड़ाने में तकरीबन एक सप्ताह का समय लग जाता है. तबतक उसकी हालत ऐसी कर दी जाती है कि लेने वाला परेशान होकर गाड़ी को उसी की हाल पर छोड़कर मन मसोसकर रह जाता है.

अब सदर थाना मुजफ्फरपुर को ही लीजिए. कितनों के सपनों की अरमान गाड़िया और बाइक थाने में सड़ रहे हैं. लेकिन उनकी ना निलामी हो रही है और ना ही रख-रखाव. अधिकारी भी इस मामले में चुप्पी साधे रहते हैं. सवाल सबसे बड़ा है कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन. हम तो बस चौचक चर्चा ही कर सकते हैं. सवाल उठाना पब्लिक का काम है. गाड़ियों के बारे में थानेदारों को जानकारी नहीं रहती. वाहन पंजी तक थाने में नहीं है. मामला कोर्ट में हमेशा विचाराधीन रहता है. जिले में 28 थाने हैं. रोजाना लगातार वाहनों की जब्ती होती है. किस वाहन में कितने वाहन हैं पुलिस के पास डाटा नहीं है. कुल मिलाकर इस कुव्यवस्था का भगवान ही मालिक है.

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चौचक चर्चा चाय की दुकानों पर होनी वाली बातचीत और चर्चा पर अधारित व्यंग्य है. इसे किसी स्थान,पात्र और जीवित मृत से ना जोड़े. बस मजा लें.

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