कविवर महेंद्र मधुकर की काव्य कृति का लोकार्पण
मनाई गई महाकवि श्यामनंदन किशोर की जयंती
‘महाकवि श्यामनंदन किशोर बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के लोकप्रिय कवि गीतकार थे उनकी रचनाओं में प्रेम के तत्व पर्याप्त हैं जो उनके स्वभाव में भी सन्निहित था। यद्यपि वे कम समय तक जीवित रहे फिर भी महत्वपूर्ण सृजन से हिंदी साहित्य को समृद्धि किया।’- ये बातें मिठनपुरा स्थित मंजुलप्रिया भवन के सभाकक्ष में महाकवि श्यामनंदन किशोर की जयंती के परिप्रेक्ष्य में कविवर महेंद्र मधुकर की नई काव्य कृति ‘किसी नई ऋतु में’ का लोकार्पण करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्गार में डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव ने कहीं। डॉ प्रसाद ने आगे कहा कि मधुकर जी को मैं छात्र जीवन से ही जानता हूं। इनके गीतों में प्रकृति और प्रेम की जो ताजगी तब थी वह आज भी शेष है जो इस नई काव्य कृति में दिखती है। समारोह की शुरुआत डॉ किशोर की सहधर्मिणी डॉक्टर आशा किशोर के भाव पूर्ण आशीर्वचन और संबोधन से हुई।
मुख्य अतिथि बी आर ए बिहार विश्वविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सतीश राय ने कहा कि कोई गीतकार जब मुक्तछंद की कविताएं लिखता है तो उसमें सांगीतिकता स्वाभाविक रूप से होती है। मधुकर जी की कविताओं में लय का प्रवाह शुरू से अंत तक दिखता है।

विशिष्ट वक्ता कवि गीतकार डॉ संजय पंकज ने कहा कि कविवर महेंद्र मधुकर जितने ही बड़े गीतकार रहे हैं इस संग्रह को देखकर लगता है कि उतने ही बड़े कवि भी हैं। शब्द संयोजन और वाक्य विन्यास दोनों की विलक्षणता अपने कथ्य और शिल्प में चरम पर है। इस तरह की कविताएं पाठक आज भी पढ़ना पसंद करते हैं और इससे वे जुड़ते हुए प्रेरित होते हैं। इन कविताओं में रंग ध्वनि में तो ध्वनि रंगों में प्रवाहित हैं। जिन शब्दों और परिवेश को आज की कविताओं से खारिज कर दिया गया है वह भी इसमें प्रस्तुत होकर नया स्वाद देते हैं।
विषय प्रवेश कराते हुए समारोह के संचालक कवि गीतकार डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि इक्यासी कविताओं का यह संग्रह कथ्य और तथ्य का पूर्णता में बोध कराता है। मधुकर जी की कविताएं जीवन राग की कविताएं हैं।

वरिष्ठ कवयित्री डॉ पूनम सिंह ने कहा कि इनकी कविताओं से जुड़कर आत्मीयता की अनुभूति होती है। कवि रमेश ऋतंभर ने कहा कि इनकी रचनाओं का स्वर ऋषि परंपरा से आधुनिकता तक अपनी पूरी चेतना के साथ है। अपने भावोद्गार में डॉ महेंद्र मधुकर ने पांच कविताओं का प्रभावशाली पाठ करते हुए कहा कि डॉ श्याम नंदन किशोर मेरे गुरु थे और हमारी सृजन यात्रा के प्रेरणा स्रोत थे। उनसे हमने बहुत कुछ सीखा समझा और पाया है।
आयोजन में डॉक्टर लोकनाथ मिश्र, डॉ वीरमणि राय, डॉ अजय कुमार, डॉ मंजु कुमारी, रूबी कुमारी, मिलन कुमार, मानस दास, मौली दास ने भी अपने भाल प्रकट किए। आए हुए अतिथियों, विद्वतजनों तथा मीडिया बंधुओं का स्वागत- सम्मान डॉ सुनीति मिश्रा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के गणेश प्रसाद सिंह ने किया। प्रस्तावना, संस्कृति संगम, जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन, नवसंचेतन, प्रेम सागर के तत्वावधान में आयोजित यह पांच घंटे तक चलने वाला यह समारोह बड़ा ही अंतरंग और आत्मीय रहा।


