पुराने जमाने में लोग ओखल और मूसल का प्रयोग करते थे। अब सबकुछ मशीन आधारित हो गया है। लोगों को पोषणयुक्त भोजन मिल सके, इसके लिए डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ने मशीन से चलने वाले ओखल-मूसल का निर्माण किया है। इसका संचालन सिंगल फेज के इलेक्ट्रिक मोटर से होगा। घर में लगे पावर प्लग से जोड़कर इसे आसानी से चलाया जा सकता है।

डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, पूसा ने किया निर्माण, जल्द लोगों के लिए होगा उपलब्ध-सिंगल फेज के एक हार्स पावर के इलेक्ट्रिक मोटर से इसका हो सकता संचालन।

पोषण युक्त भोजन और परंपरागत चीजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कृषि विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग विभाग ने जनवरी में इस पर काम शुरू किया। इंजीनियर सुभाष चंद्रा इस काम में लगे। माडल बनाने के बाद उन्होंने उच्च गुणवत्ता वाला सिंगल फेज का एक हार्स पावर का मोटर, गियर, चक्का, चेन, पुल्ली काप्रयोग किया। इसका नाम ‘राजेंद्र ओखलीÓ रखा गया है। इसकी अनुमानित कीमत 75 हजार रुपये है। विवि में तैयार माडल के आधार पर इस मशीन का निर्माण विनोद इंजीनियरिंग बिहिया, भोजपुर कर रही है।

इस मशीन की पूरी बॉडी लोहे की बनाई गई है। ओखल और मूसल का निर्माण लकड़ी से किया गया है। मूसल को लोहे के फ्रेम में लगाया गया है। इसमें अनाज को परंपरागत रूप से हाथ से डालना होता है। कुटाई के बाद मशीन के सहारे ओखल से अनाज उसी सी लगी दूसरी मशीन में गिरा दिया जाता है।

वहां भूसी और टूटे दाने को अलग करने के लिए व्यवस्था है। भूसी अलग करने के लिए पंखा लगा है। कोई भी व्यक्ति इसका आसानी से संचालन कर सकेगा। इंजीनियर सुभाष का कहना है कि इस मशीन से प्रति घंटा नौ से 10 किलो धान से चावल निकाला जा सकता है। मसाला प्रति घंटा दो से ढाई किलो तैयार किया जा सकता है।

आठ से 10 किलो जौ का छिलका हटाया जा सकता है। राइस मिल से धान की कुटाई में चावल इतना साफ हो जाता है कि जरूरी पोषक तत्व निकल जाते हैं। राजेंद्र ओखली से ऐसा नहीं होगा।

कुलपति डा. आरसी श्रीवास्तव ने कहा कि रोजगार सृजन की दिशा में विश्वविद्यालय नवोन्मेषी कार्य कर रहा है। राजेंद्र ओखली भी उसकी ही एक कड़ी है। शीघ्र ही यह आम लोगों के लिए उपलब्ध होगी।
