यूक्रेन में फं’से और लौटेने वाले ज्यादातर छात्र-छात्राएं मध्यवर्गीय परिवार से हैं। अपने लाल को डॉक्टर बनाने के सपने को साकार करने के लिए किसी ने जमीन बेच दी तो किसी ने कर्ज लेकर खर्च को पूरा किया। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने अरमानों पर पानी फेर दिया।

वजह अब तक पढ़ाई पर किया गया खर्च लगभग डूब गया है तो दूसरी ओर पढ़ाई अधर में लटक गई है। कई छात्र व अभिभावक कहते हैं कि नीट में अच्छे नंबर आने के बाद भी सरकारी कॉलेज में सीमित सीट होने से दाखिला नहीं हो पाया। ऐसे में निजी कॉलेज ही विकल्प बचे। निजी कॉलेजों में महंगी फीस से बचने के लिए ही यूक्रेन का रूख किया।

बलिया के कसबा निवासी मोहम्मद इरफान ने पुत्र को काफी उम्मीद के साथ यूक्रेन भेजा था। जमीन भी बेचनी पड़ी थी। अब युद्ध के कारण पढ़ाई पूरी किए बगैर ही पुत्र को लौटना पड़ रहा है। लोहियानागर के मृत्युंजय कुमार गोलू ने बताया कि भतीजी मनीषा कुमारी को वर्ष 2020 में नीट में 720 में 470 अंक मिले। सरकारी कॉलेज में एडमिशन नहीं हुआ। पिता टेंट हाउस चलाते हैं। कर्ज लेकर यूक्रेन भेजा था।

वहीं पोखरिया के हिमांशु कश्यप के पिता अमोद कुमार झा खेतीबाड़ी करते हैं। सगे संबंधियों से कर्ज लेकर बच्चे को यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए भेजा था। गौड़ा दो पंचायत के दनियालपुर निवासी आदित्य कुमार के पिता पंजाब में राजमिस्त्री है। अपने बेटे को यूक्रेन मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए भेजा। बखरी के मनोज चौरसिया ने अपने बेटे बमबम को यूक्रेन भेजने के लिए 2019 में जमीन बेच दी। फिलहाल बेटा यूक्रेन से निकलने के बाद दो दिनों से हंगरी में फंसा हुआ है।

यूक्रेन में नालंदा के 41 छात्र मेडिकल समेत अन्य पढ़ाई करने गए थे। इनमें से कई लोगों ने तो अपनी जमा पूंजी को लगाकर बेटे को वहां भेजा था। खारकीव में पढ़ रहे शुभम झा के पिता नवेंदु झा ने बताया कि बहुत मुश्किल से इधर-उधर से पैसों की व्यवस्था कर बेटे को विदेश भेजा था। एक साल के लिए सात लाख रुपए जमा करने पड़े थे। घर की जमा पूंजी भी खत्म हो गयी।

साधारण परिवार से आने वाले गोपालगंज के राहुल के कई जरूरी कागजात यूक्रेन में छूट गए हैं। अब वह यह साबित नहीं कर पाएगा कि यूक्रेन की नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी का छात्र है। थावे की वृंदावन पंचायत के इरशाद अली ने खेत बेचकर अपने बेटे इमरान अली को मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन भेजा था। वे कहते हैं कि खेत बेचकर 6 लाख 1200 रुपए का भुगतान कर चुके हैं। अब बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित हूं। गोपालगंज में अबतक पहुंचे बीस छात्र-छात्राओं में से कोई दो साल तो कोई चार साल की पढ़ाई कर चुका है। वहीं दिसंबर 2021 में जिसने मेडिकल में दाखिला लिया था। इसके लिए उसने पैकेज लिया है और उसे प्रत्येक साल पांच लाख रुपए देने हैं। एक साल की फीस जमा हो चुकी है। कुल खर्च के तौर पर 46 लाख लगने हैं।

भोजपुर के 13 विद्यार्थियों के डॉक्टर बनने के सपनों पर फिलहाल ग्रहण लग गया है। ये सभी मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। उदवंतनगर प्रखंड के नवादाबेन गांव निवासी मिथलेश सिंह कहते हैं इकलौते पुत्र राकेश को डॉक्टरी पढ़ने के लिए भेजा था। रुपये कम पड़ने पर जमीन भी बेची। महज दो माह की पढ़ाई बची थी। 25 मई को ही फाइनल परीक्षा देकर डिग्री लेकर वापस आना चाहता था। फिलहाल बेटे के घर वापसी का इंतजार है। आरा के शीतल टोला मोहल्ले के निवासी लक्ष्मण चौधरी ने कहते हैं कि जमीन बेचकर व कर्ज लेकर बड़ी बेटी अश्विनी को मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन भेजा था। वह थर्ड ईयर में है। उसे लौटना पड़ रहा है।

सीवान में यूक्रेन से लौटे छात्रों और उनके अभिभावकों को युद्ध खत्म होने का इंतजार है। दुकानदार आनंद कुमार अरुण कहते हैं कि ऊहापोह हूं। बेटे के भविष्य की चिंता सता रही है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें। वहीं बड़हरिया प्रखंड के इमामुल हसन कहते हैं कि मजबूरी में बेटे को यूक्रेन भेजा था। अब तो युद्ध खत्म होने का इंतजार करने की सिवा कोई चारा नहीं है। यूक्रेन के लवीव मेडिकल यूनिवर्सिटी में चौथे वर्ष एमबीबीएस में पढ़ने वाली वैशाली की छात्रा सुप्रिया अंजली गुरुवार की रात लौटी। उसे पोलैंड बॉडर से दिल्ली और पटना के रास्ते लाया गया। छात्रा फिलहाल काफी तनाव में है।