जेल में बंद कैदियों की यक्ष्मा जांच एवं उपचार की निरंतरता होगी सुनिश्चित: डॉ. शगुफ्ता सोमी

सीतामढ़ी: बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति पटना के निर्देशानुसार जिले के सभी मंडल कारा एवं बाल सुधार गृहों में आई एस एच टी एच कैंपेन का शुभारंभ संचारी रोग पदाधिकारी डॉक्टर शगुफ्ता सोमी एवं कारा अधीक्षक श्री मनोज कुमार सिन्हा द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। यह कार्यक्रम अगले एक माह तक चलेगा जिसके अंतर्गत मंडल कारा में बंद लगभग 1300 कैदी एवं बाल सुधार केंद्रों में रह रहे बच्चों का एसटीआई, एचआईवी, टीबी, हेपिटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी आदि का जांच किया जाएगा।


बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति द्वारा सहयोगी संस्थाओं के सहयोग से चिकित्सकों, परिधापकों एवं नर्सिंग स्टाफ का एचआईवी, टीबी, यौन संबंधित रोग एवं हेपाटाईटिस बी एवं सी की जांच एवं उपचार में प्रशिक्षित करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। इस दौरान यह जानकारी मिली है कि काराग्रहों में टीबी जांच के लिए स्पुटम संग्रहण एवं ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था का अभाव है। इसे ध्यान में रखे हुए स्वास्थ्य विभाग के कार्यरत कर्मियों की जानकारी लेकर एवं उनसे संपर्क स्थापित कर यक्ष्मा के संभावित रोगियों की समय से जांच एवं आवश्यक उपचार प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। इस बाबत परियोजना निदेशक, बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति, अलंकृता पांडेय एवं महानिरीक्षक, कारा शीर्षत कपिल अशोक ने भी सभी जिला पदाधिकारी को पत्र जारी आवश्यक निर्देश दिए हैं।


जिले में सभी संभावित टीबी मरीजों की जाँच करना लक्ष्य

सीडीओ डॉ शगुफ्ता सोमी ने बताया कि वर्ष 2025 तक यक्ष्मा उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तीन चीजें जरुरी है। पहला सभी आम लोगों को टीबी के विषय में पूरी जानकारी देना। दूसरा सभी संभावित एवं छिपे हुए टीबी मरीजों की ससमय स्क्रीनिंग कराना एवं उन्हें बेहतर उपचार प्रदान कराना। तीसरा टीबी उन्मूलन के लिए किए जा रहे सभी सरकारी प्रयासों एवं उपाय के बारे में भी सभी लोगों को अवगत कराना। जेल में बंद कैदियों की जांच इसी क्रम में एक पहल है। इस पहल के जरिए जेल में बंद कैदियों की भी टीबी जाँच सुनिश्चित हो सकेगी।

काराग्रह एवं अन्य बंद जगहों में रहने वाले लोगों को टीबी संक्रमण का खतरा सबसे अधिक

अभियान के बारे में जानकारी देते हुए सीडीओ डॉ. शगुफ्ता सोमी ने बताया कि काराग्रह एवं अन्य बंद जगहों में रहने वाले लोगों को टीबी संक्रमण का खतरा सबसे अधिक रहता है। बंद जगहों में टीबी के बैक्टीरिया जल्दी फैलते हैं और उक्त जगहों पर रहने वाले लोगों को आसानी से संक्रमित कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि कारागृह एवं सुधारगृह जैसी जगहों में एंट्री पॉइंट पर ही आने वाले लोगों की यक्ष्मा जांच की सुविधा होनी चाहिए। इससे संक्रमित व्यक्ति की पहचान होगी और उक्त व्यक्ति को उपचार उपलब्ध कराया जा सकेगा। डॉ. सोमी ने बताया कि नाको से प्राप्त निर्देश के आलोक में इस अभियान का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें जेल में बंद विचाराधीन एवं सजायाफ्ता दोनों प्रकार के कैदियों की एचआईवी, टीबी, यौन संबंधित रोग एवं हेपाटाईटिस बी एवं सी की जांच की जाएगी। जांच में चिन्हित व्यक्तियों को ससमय उपचार उपलब्ध करायी जाएगी।

जांच एवं उपचार की निरंतरता की जाएगी सुनिश्चित

डॉ. सोमी ने बताया कि अभियान का मकसद सिर्फ एक महीने तक ही जेल में बंद कैदियों की जांच एवं उपचार की व्यवस्था प्रदान करना नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य अभियान के बाद भी नियमित तौर पर काराग्रहों में बंद कैदियों की एचआईवी, टीबी, यौन संबंधित रोग एवं हेपाटाईटिस बी एवं सी की जांच एवं समुचित उपचार को जारी रखना है। इसे ध्यान में रखते हुए कैदियों की टीबी जांच एवं उपचार की निरंतरता आगे भी सुनिश्चित की जाएगी। उक्त कार्यक्रम में डीईओ सह लेखापाल रंजन शरण वरीय यक्ष्मा पर्यवेक्षक संजीत कुमार एवं श्वेत निशा सिंह, डी आई एस राजेश कुमार, लिपिक रवि राज, एलटी मनोज मधुकर, भरत कुमार , काउंसलर मनोज सिंह ज्योति रानी आदि उपस्थित रहे।