MUZAFFARPUR (ARUN KUMAR) : बिहार में कोरोना वाय’रस ने 32 जिलों में अपना पैर प’सार लिया है, जिसमें से अब तक चार मरी’जों की मौ’त हो चुकी है और इस बीच अबतक 135 व्यक्ति इस जानलेवा बीमारी से अपनी जिं’दगी की जं’ग जीत कर स्व’स्थ हो चुके हैं और अपने घर लौ’ट चुके हैं. आज समस्तीपुर जिले में कोरोना संक्र’मण ने अपनी दस्त’क दे दी है और बिहार में संक्र’मण का आंकड़ा 529 पर पहुँच चुका है.
देश भर में ब’ढ़ते संक्र’मण के बीच तमाम सि’यासी राज’नीति के बाद केन्द्र सरकार द्वारा एडवाइ’जरी जारी होने के बाद देश के विभिन्न राज्यों में फं’से प्रवासी मज’दूरों और छात्रों के बिहार वाप’सी का सिल’सिला जारी हो चुका है. इसी कड़ी में मंगलवार को गुजरात के अहमदाबाद से 1208 प्रवासियों को लेकर साबरमती एक्सप्रेस श्र’मिक स्पेशल ट्रेन मुजफ्फरपुर में अहले सुबह 4 बजे और दूसरी ट्रेन केरल के एर्नाकुलम से चलकर संध्या साढ़े पांच बजे मुजफ्फरपुर जंक्शन के प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर पहुंची.
इन दोनों ही ट्रेन के यात्रियों का पंजी’करण उपरांत 24 सदस्यीय मेडिकल टीम द्वारा स्वास्थ्य जां’च किया गया और इसके बाद प्रशासन द्वारा विभिन्न जिलों के लिये तैयार सैनि’टाइज बसों द्वारा इन्हें बिहार के अलग अलग जिलों के लिये रवा’ना किया गया. वहां वे अपने जिले में बने क्वारं’टाइन सेंटर में 21 दिनों तक रहेंगे उसके उपरांत ही वे अपने घर जा सकेंगे. पहले यह समय सीमा 14 दिनो की थीं जिसे बढ़ा कर 21 दिनों का कर दिया गया है. इन सभी प्रवासियों को 21 दिन क्वरं’टाइन सेंटर में ही रहना होगा.
वहीं मुजफ्फरपुर जिले के श्रमि’क मजदूर और छात्र छात्राओं को जिले और विभिन्न प्रखंडों में बने 50 क़्वैरें’टाईन सेंटरो में 21 दिन रहना होगा.
अलग अलग जिलों में सवार सभी यात्रियों को प्रशासन द्वारा भोजन और पानी उपलब्ध कराया गया, और बसों में बैठने से पूर्व सभी के सामानों और यात्रियों को सैनि’टाईज भी किया गया.
इधर पिछले तीन दिनों से यात्रियों के रेल टि’कट को लेकर सि’यासी घमासा’न मचा है, जहाँ एक ओर केन्द्र से लेकर बिहार सरकार तक दा’वा कर रही है कि अपने-अपने राज्यों के बाहर फं’से मज’दूरों को घर वापस लाने के लिए एक भी पैसे नहीं वसू’ल किया जा रहा है. केन्द्र सरकार ने भी दा’वा करते हुए कहा था कि वे महज 15 फीसदी किराया राज्य सरकारों से वसू’ल रहे हैं वहीं यात्रियों से किसी प्रकार का कोई कोई कि’राया या शु’ल्क नहीं लिया जा रहा है.
वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी स्वयं वीडियो जारी कर स्प’ष्ट किया था कि वे बिहारी म’जदूरों से एक रुपया भी रेल कि’राया नहीं व’सूल रहे हैं बल्कि बाहर से आने वाले मजदूरों को क्वारें’टाइन कराने के बाद स’हायता राशि स्वरुप 500-500 रूपये भी दिए जाएंगे. लेकिन केन्द्र से लेकर राज्य तक तमाम सरकारों के दा’वे ध्वस्त और खो’खले सा’बित हो गए जब बीते सोमवार को बेंगलुरु से पटना आए और आज मंगलवार को गुजरात और केरल से मुजफ्फरपुर पहुंचे मज’दूरों ने अपने पास मौजूद ट्रेन का टिक’ट भी दिखाया.
मंगलवार को गुजरात और केरल के एर्नाकुलम से मुजफ्फरपुर पहुंची श्रमि’क स्पेशल ट्रेन से उतरे मजदू’रों ने टिकट दिखाते हुए बताया कि हमनें ट्रेन का किरा’या दिया है, कइयों ने टिकट पर अंकित कि’राये से अधिक शुल्क के भु’गतान की बात कहीं. इतना ही नहीं मज’दूरों ने मुजफ्फरपुर न्यूज़ को बताया की 3 दिनों के सफर में मात्र 2 वक़्त का ही भोजन उपल’ब्ध करवाया गया, पीने के पानी की भी कोई स’मुचित व्यवस्था नहीं की गई थी. यह दु’खभरी दा’स्तां सुनाते सुनाते कई श्रमिक भा’वुक भी हो गए. जबकि सरकारों द्वारा दा’वे तो बड़े बड़े किये जा रहें हैं.
टिकट दिखाते हुए केरल से मुजफ्फरपुर पहुंचे प्रवा’सी मज’दूरों ने बताया कि उनसे 1020 रुपये वसू’ले गये हैं जबकि कुछ ने टिकट पर अं’कित राशि से अधिक भु’गतान करने की बात बताई. वहीं मंगलवार अहले सुबह गुजरात से मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे प्रवा’सी श्रमि’कों ने बताया की 715 रूपए अंकि’त रेल किराया का 730 रुपए दे कर वह यहाँ तक पहुंचे हैं. यानि 43 दिनों के लॉ’क डाउन में फंसे मजदूरों से रेल किराये की राशि तो वसू’ली ही गई साथ ही साथ गरी’ब और बेब’स, ला’चार म’जदूरों से अवै’ध वसू’ली भी की गयी.
अब म’जदूरों के इन आंसुओं पर सरकार कितना सं’ज्ञान लेती है या क्या का’र्रवाई करती है यह तो वक़्त ही बताएगा. लेकिन सार्व’जनिक तौर पर रेल कि’राया न लेने का ए’लान कर गरी’बों से रेल कि’राये के साथ ही नाजा’यज राशि व’सूले जाने का मामला सरकार के तमाम दा’वों को झू’ठा साबित करता नजर आता है.
अपने के बीच अपने घर पहुंचने की लालसा में श्रमिक मजदूरों ने अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा तो रेल कि’राया और रास्ते में ख’र्च कर दिया अब घर पहुंच कर वे कैसे अपने खाने-पीने का प्रबं’ध कर सकेंगे. क्या राज्य सरकार द्वारा खाते में भेजी जा रही 1000 रूपए की सहा’यता राशि से वे अपना और अपने परिवार का पेट पा’ल सकेंगे? अगर पा’ल भी सकेंगे तो महज 1000 रुपये में आखिर कितने दिनो तक? मोमब’त्ती ज’लाने और थाली पी’टने से गरी’ब और उनके बाल बच्चों का पेट नहीं भ’रता साहब, ना ही मदद के खो’खले दावों से, सच्चाई सामने आ ही जाती है.